रण की प्यास: सीएम मोदी का वचन | सीमा पर जवानों की जिंदगी का बदलाव
2009 के नए साल का सूरज गुजरात के कच्छ के रण में बेरहमी से चमक रहा था। ऊष्ण हवा तपती रेत को और सुलगा रही थी। इस उजाड़ परिदृश्य के बीच उसी दिन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी सीमा पर आ पहुँचे। उनके आगमन से जवानों के दिलों में उम्मीद की लहर दौड़ गयी। यह सिर्फ एक नेता का दौरा नहीं था, यह देश की चिंता व जवानों के प्रति सम्मान का ज्वार था।
In 2009, as Chief Minister, Narendra Modi visited the Indo-Pak border in Gujarat and spent time with BSF jawans.
— Modi Story (@themodistory) December 16, 2023
The jawans brought to his attention the issue of access to potable water, having to travel 50 kilometers for it. CM Modi promised a solution, and within a few months,… pic.twitter.com/tyJR4arWVk
मोदी जी जवानों के साथ बैठे, हंसी-मजाक के साथ उनकी कहानियाँ सुनीं। परंतु इस हसी-मजाक के नीचे एक चिंता उन्हें सता रही थी। उन्हें जवानों की रोज़मर्रा की परेशानी के बारे में पता चला - सुइगांव गाँव तक 50 किलोमीटर का दुर्गम सफ़र, जहाँ से टैंकर भर-भर कर पीने का पानी लाया जाता था।
इस कथा को सुनते हुए मुख्यमंत्री के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच गयीं। वो एक इरादे वाले व्यक्ति थे, और इस चिंता को देखते ही उनका जवाब बुलंद था। उन्होंने समाधान लाने का वचन दिया और जवानों को आश्वासन दिया कि वो उनके लिए पाइपलाइन से पीने का पानी लाएंगे।
सीएम मोदी को बॉर्डर के अंतिम छोर, जीरो पॉइंट, तक ले जाने वाले BSF अधिकारी पुष्पेंद्र सिंह राठौर याद करते हैं कि वचन देने में मोदी जी को मात्र 2 सेकंड लगे थे। उन्होंने ज़ोर से कहा था, "आज एक जनवरी है, छह महीने के अंदर पाइपलाइन के ज़रिए आपके पास पीने का पानी पहुँच जाएगा।"
राठौर बताते हैं कि कच्छ का रण चिलचिलाती गर्मी और खारे पानी के लिए कुख्यात है, जहाँ आम तौर पर पाइपलाइनें टिक नहीं पातीं। लेकिन मोदी जी ने जर्मनी से खास पाइपलाइनें मंगवाकर समस्या का समाधान करने का निश्चय कर लिया। वचन के ठीक 6 महीने बाद, जून में, BSF कैंप के पास एक विशाल जलाशय का निर्माण किया गया और उस तक नई पाइपलाइन से पानी पहुँचाया गया।
सीमा पर मोदी जी के दौरे की कहानी पानी से कहीं ज़्यादा है; यह भरोसे की, एक ऐसे नेता को देखने की कहानी है जो सुनता है, समझता है और निभाता है। एक ऐसे नेता जिसकी गारंटी पर आंख मूंदकर भरोसा किया जा सकता है।
निष्कर्ष:
छह महीने में बंजर ज़मीन में पानी से जीवन लौटाने का यह किस्सा सीएम मोदी के संकल्प और कार्यकुशलता का बेजोड़ उदाहरण है। इस कहानी में सीमा पर तैनात वीरों को मिले सम्मान और उनकी ज़िंदगी में आए बदलाव से एक सन्देश उभरता है - नेतृत्व का असली माप समस्याओं का समाधान करना होता है, ना कि सिर्फ भाषण देना।